राजस्थानी मे समकालीन विषयों का बढ़ रहा महिलाओं लेखन
मरुदेश संस्थान की ओर से आयोजित 'राजस्थानी महिला लेखन - दशा जन्मदिन मङ्गलमय हो दिशा' विषय पर आयोजित परिसंवाद

सालासर। राजस्थानी की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शारदा कृष्ण ने कहा है कि आज का राजस्थानी महिला लेखन चूल्हे-चौके, गांव और पनघट से बाहर निकलकर समकालीन विषयों पर भी हो रहा है। आज की राजस्थानी लेखिकाओं में अपने आप को खोजने की एक ललक दिखाई दे रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि महिलाएं मुखर होकर अभिव्यक्त हो रही हैं। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से सालासर के सावरथिया सेवा सदन में मरुदेश संस्थान की ओर से आयोजित 'राजस्थानी महिला लेखन - दशा जन्मदिन मङ्गलमय हो दिशा' विषय पर आयोजित परिसंवाद के उदघाटन सत्र में व्यक्त किए।
डॉ. शारदा कृष्ण ने कहा कि प्रकृति और पुरुष के बीच अंतर डालने के प्रयास नहीं होने चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बीकानेर के डूंगर महाविद्यालय में राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रकाश अमरावत ने कहा कि भले ही राजस्थानी में लिखने वाली महिलाएं कम हैं, लेकिन जो लिखा जा रहा है गुणवत्तापूर्ण है। महिलाएं गृहस्थी से जुड़े अपने सारे काम करते हुए भी रचनाकर्म कर रही हैं, जो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
विषय प्रवर्त्तन करते हुए साहित्य अकादेमी के राजस्थानी भाषा परामर्श के संयोजक मधु आचार्य 'आशावादी' ने कहा कि राजस्थानी का महिला लेखन अनंत संभावनाओं से भरा है, लेकिन महिला रचनाकारों को अधिक सक्रिय होने से ही साहित्य का भंडार समृद्ध होगा।
बीज भाषण में राजस्थानी रचनाकार विमला महरिया ने राजस्थानी महिला रचनाकरों के लेखन पर बात करते हुए कहा कि राजस्थानी ने हिंदी को बहुत दिया है। राजस्थानी की मध्यकालीन कवयित्री मीरां के साथ महिला लेखन का जिक्र करते हुए कहा कि राजस्थानी में महिला रचनाकरों ने महत्ती लेखन किया है।
राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार भंवरसिंह सामौर ने इस मौके पर कहा कि सिर्फ विद्रोह को नारी विमर्श नहीं कहा जा सकता है। इससे आगे भी काम करना होगा।
उदघाटन सत्र का संचालन मरुदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉ. घनश्याम नाथ कच्छावा ने किया।
पहले सत्र में अनुश्री राठौड़ ने ' राजस्थानी लेखन में घरेलू लोकानुरंजन और स्त्री' विषय और संजु श्रीमाली ने 'राजस्थानी साहित्य में नारी विमर्श' पर पत्रवाचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कोलकाता की साहित्यकार सुंदर पारेख ने कहा कि संवेदना के स्तर पर महिलाएं कुछ अधिक अभिव्यक्त कर सकती हैं। कार्यक्रम का संचालन हरीश बी.शर्मा ने किया।
दूसरे सत्र में गीता सामौर ने 'युगबोध की पहचान और आज की महिला रचनाकरों की कहानियां' विषय पर अपने पत्रवाचन में कहा कि अभी तक राजस्थानी लेखिकाओं को काफी कुछ करना है, उन्हें युगबोध को समझना होगा। आज की राजस्थानी कहानी को लंबा सफर तय करना है।
समापन सत्र में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष डॉ. अर्जुनदेव चारण ने कहा कि महिलाओं को समकालीन साहित्य को समझते हुए आगे बढ़ना होगा। दूसरी भारतीय भाषाओं में महिलाएं बहुत ही अच्छा और आगे का लिख रही हैं। इस सत्र का संचालन नुपूर जैन ने किया। आगन्तुक अतिथियों का स्वागत संस्था के सचिव कमल नयन तोषनीवाल, संयोजक किशोर सैन, ज्योति कच्छावा, सुनीता रावतानी, डॉ. शर्मिला सोनी, चित्रकार पंकजा तूनवाल, अजीत राज, दिनेश नाथ कच्छावा, मोहित पारख आदि ने किया। समारोह में रविशंकर पुजारी, साहित्यकार बजरंग लाल जेठू, डॉ. प्रदीप कुमार दीप, बुलाकी शर्मा आदि उपस्थित थे।