बीकानेर में 15 दिवसीय धींंगा गवऱ पूजन सम्पन्न

मां गवरजा को अर्पित हुआ सोलह श्रृंगार, अखंड सुहाग और परिवार की सुख-शांति की कामना


बीकानेर, 16 अप्रैल। बीकानेर की लोकपरंपरा और नारी शक्ति से जुड़ा 15 दिवसीय धींगा गवऱ पूजन आज श्रद्धा और भक्ति के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अजूना (उद्यापन) का आयोजन भी विधिपूर्वक किया गया, जो पूजन की पूर्णता और संकल्प सिद्धि का प्रतीक माना जाता है।


विवाहित महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस विशेष पूजन में पति, पुत्र और पूरे परिवार की खुशहाली, दीर्घायु और सौभाग्य की कामना के साथ गणगौर माता (गवरजा) का पूजन किया जाता है। पूजन के समापन पर आज मां गवरजा को सोलह श्रृंगार के साथ सजाया गया — जिनमें फूल, मेहंदी, बिंदी, चूड़ियां और नवीन वस्त्र प्रमुख रहे।
पूजन में गवरजा के चित्र को सजाकर विशेष रूप से पान, मोटा भुजिया, फीके और मीठे कहणे, बीज, ऋतुफल, श्रीफल, सवा किलो रोटे और चूरमे का भोग अर्पित किया गया। घर की सभी महिलाओं ने पारंपरिक गीत जैसे “मेहंदी लगे हथेली” और “धींगा गवर री लीला न्यारी रे” गाकर वातावरण को भक्तिमय और उल्लासपूर्ण बना दिया।
पूरे 16 दिन चलने वाले इस व्रत में नियमित पूजा, कथा वाचन, उपवास और नारी शक्ति का अभिनंदन देखने को मिला।
यूं अलग है गणगौर से धींगा गवऱ पूजन
गणगौर और धींगा गवऱ दोनों पूजनों की अवधि 16 दिन की होती है, लेकिन इनका प्रारंभ और स्वरूप अलग-अलग होता है। जहां गणगौर का पूजन होली के अगले दिन से शुरू होकर कुंवारी कन्याओं द्वारा अच्छे वर की कामना और सुहागिनों द्वारा पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है, वहीं धींगा गवऱ का पूजन गणगौर पर्व के बाद शुरू होता है और इसमें कुंवारी कन्याओं का पूजन वर्जित माना गया है।
धींगा गवऱ पूजन में सुहागिनों के साथ-साथ विधवाएं भी भाग लेती हैं, जो इसे और अधिक विशेष बनाता है। देवी पार्वती के शक्ति स्वरूप को समर्पित यह पूजन केवल व्यक्तिगत नहीं, समस्त परिवार की सुख-समृद्धि और जीवन के हर क्षेत्र में शक्ति के संरक्षण की भावना से जुड़ा है।
यह परंपरा बीकानेर के पश्चिमी क्षेत्र और परकोटे निवासी लोगों के बीच गहराई से रची-बसी है।
मान्यता है कि धींगा गवऱ ऐसा आशीर्वाद देती हैं जो भाग्य में भी न लिखा हो, उसे भी प्रदान कर देती हैं। यही कारण है कि यह पूजन केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत विश्वास और सामूहिक ऊर्जा का उत्सव बन चुका है।

इस तरह होती है धींगा गवऱ का पूजन: परंपरा, श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक
धींगा गवऱ पूजन राजस्थान की संस्कृति का एक अनूठा धार्मिक पर्व है। विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है, जो देवी पार्वती के शक्ति रूप ‘गवरजा’ अर्थात माँ पार्वती को समर्पित होता है।
पूरे पंद्रह दिनों तक महिलाएं एक विशेष स्थान पर या तो किसी दीवार पर गणगौर मांडन या किसी पंथेवाड़ी पत्थर पर गवरजा की स्थापना करती हैं। के माध्यम से नहीं, बल्कि पारंपरिक प्रतीकों और चित्रों द्वारा संपन्न होता है।
प्रत्येक दिन नियमपूर्वक पूजन किया जाता है। गवरजा के समक्ष दीपक जलाकर, सुगंधित पुष्पों, मेहंदी, बिंदी, चूड़ियां, सोलह श्रृंगार की सामग्री से देवी को सजाया जाता है। महिलाएं गणगौर माता की व्रत कथा का पाठ करती हैं, जिसमें शक्ति, समर्पण और अखंड सौभाग्य की लोक कथाएं होती हैं। तथा संध्या समय बाद घर परिवार मोहल्ले की महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से लकड़ी से निर्मित गणगौर मूर्तियों के समक्ष गीत भजन गायन कीया जाता है। 

मेहंदी लगे हथेली, धींगा गवर री लीला ल्यारी रे
बाली गवर के बाद हैप्पी व्यास परिवार ने धींगा गवर का पूजन कर अखंड सुहान की कामना के साथ गणगौर का पूजन किया । मां गवरजा का आज सोलह श्रृंगार कर फूल, मेहन्दी बिन्दी आदि चढ़ाये। हैप्पी व्यास परिवार की सुनीता व्यास ने बताया कि परिवार की सभी महिलाओं ने गवरजा के गीत गाये जिसमें मेहंदी लगे हथेली, धींगा गवर री लीला न्यारी रे’ आदि थे। पूजन में मां गवरजा के चित्र को सजाकर नये वस्त्र पहनकर पूजन किया। पूजन में परिवार की हेमलता, पूर्णिमा, अरूणा, मीनाक्षी आदि शामिल रही।