राजथान का शहर बीकानेर अपनी कला और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट छाप रखता है।
ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाते हैं जो सबको आश्चर्य में डाल देते हैं। अभी हाल ही में हुए शोध में सामने आया कि बीकानेर के रहवासियों ने भगवान नृसिंह को न केवल मंदिर में ही बल्कि भवन के मुख्य द्वार पर जहां गणेश विराजमान होते हैं वहां स्थान दिया है। साले की होली स्थित एक भवन मे ऐसा ही देखा गया। भवन के मुख्य द्वार के तोरण पर नृसिंह हिरण्यकश्यप को अपनी जांघ पर लिए है और उसका संहार कर रहे हैं। भवन में रहने वाली महिला से जब इस सम्बन्ध में पूछा गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की। हालांकि इस पूरे पैनल में हनुमान, विष्णु व गणेश भी बने है। ऐसा उदाहरण पूरे बीकानेर में अब तक नहीं देखा गया है।
Painting of the glory of Narasimha Dev in the building architecture of Bikaner
इसी प्रकार डागा चैक में हरसुखदास किशनलाल बालकिशन अनन्तलाल डागा जी की हवेली के निज मंदिर में नृसिंह जी का बहुत ही मनमोहक चित्रण हुआ है। यहां रहने वाले श्री किशन चैधरी जी के अनुसार यह परिवार नृसिंह जी के प्रति अटूट आस्था रखता है। आज भी इस मंदिर की पूजा का खर्च यही परिवार उठाता है। यह चित्रण स्वर्ण कलम का बेहतरीन उदाहरण है। करीब 130 साल पुरानी इस हवेली का यह चित्रण बीकानेर की चित्रकला के विकास।का भी प्रमाण दे रहा है। इसमें इतना बारीक काम हुआ है जिसमें समय और पैसा दोनो ही ज्यादा लगा है। इसमें भक्त प्रहलाद और उनकी माता कयादु को भी स्थान मिला है। चित्रण में हिरण्य- कश्यपु का चेहरा हिरण के मुख की तरह दिखाया गया है। चित्र की जितनी तारीफ की जाए कम है।
ऐसी ही हू बहू हू पत्थर की प्रतिमा हमें जूनागढ़ के दरबार हाॅल में भी देखने को मिलती है। हाॅल के झरोखों में कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनी हैं उसमें एक नृसिंह देव की भी प्रतिमा है। प्रतिमा जितनी छोटी है उतनी ही सुन्दर भी। हवेली के द्वार पर भगवान नृसिंह की दो प्रतिमाएं हैं। बीच में गणेश जी है व दोनों ओर नृसिंह जी है। दोनो प्रतिमाओं में हिरण्यकश्यपु का सिर अलग अलग दिशाओं में है। एक में उत्तर व दूसरें में दक्षिण
-डाॅ रितेश व्यास
(इतिहास विशेषज्ञा) प्रिंसिपल, सिस्टर निवेदिता कन्या महाविद्यालय