जीव की गति उसकी लेश्या से ज्ञात हो जाती है: श्रृतानंद महाराज साहेब

 जैन धर्म में लेश्या के तात्पर्य पर दिया प्रवचन

बीकानेर, 17 सितम्बर। जीव के शुभाशुभ परिणाम को लेश्या कहा गया है। मन, वचन और काया की हलचलों  पर जब कषायों का रंग चढ़ जाता है, तो उस कषाय रंजित योग को लेश्या कहा जाता है। यह छः प्रकार की लेश्यायें क्रमशः कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म तथा शुक्ल लेश्या हैं। इनमें पहली तीन लेश्या अशुभ और शेष तीन शुभ हैं-  यह प्रवचन जैनाचार्य गच्छाधिपति नित्यानंद सुरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न जैन मुनि प्रखर प्रवचनकार श्रृतानंद महाराज साहेब ने रांगड़ी चैक स्थित पौषधशाला में चल रहे चातुर्मास के दौरान कहे। 


Parshvanath Jain Mahila Mandal from Pali Visited Bikaner


मुनि श्रृतानंद म सा  ने जीव की लेश्या के बारे जानने का एक उदाहरण के माध्यम से जानने के लिए विचारों की भिन्नता भरा दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि छह अलग-अलग लेश्या (भाव-परिणामों) वाले व्यक्ति  एक वन में गए। उन्होंने एक आम का पेड़ देखा और उनकी आम खाने की इच्छा हुई। एक व्यक्ति ने कहा इस पेड़ को जड़ से काट लेते हैं, फिर आम खायेंगे। दूसरा बोला दृ पेड़ को जड़ से काटने की क्या जरुरत है, बड़ी-बड़ी शाखाएं काट लेते हैं। तीसरे व्यक्ति ने कहा कि केवल टहनियों को ही काट लिया जाये। चैथे व्यक्ति ने कहा कि पेड़ पर चढ़ कर सारे आम तोड़ लेते हैं। पाँचवा बोला कि पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ना तो ठीक है लेकिन सारे आम तोड़ने की क्या आवश्यकता है, सिर्फ पर्याप्त मात्रा में पके-पके आम ही तोड़ लेते हैं और उनसे ही पेट भर लेंगे। अंत में छठे व्यक्ति ने कहा कि हमें आम ही खाने हैं तो उसके लिए यह सब करने की क्या आवश्यकता है, पेड़ के नीचे चारों ओर कितने पके-पके आम बिखरे पड़े हैं। इन्हें ही उठाओ और खा लो। छहों व्यक्तिओं के आम खाने के बारे में अलग-अलग विचार हैं। पहला अति क्रूर नजर आता है और छठा पेड़ को हाथ भी लगाना नहीं चाहता।

जीव के विचारों से उसकी लेश्या का ज्ञान होता है तथा लेश्या से उसकी अगली गति का ज्ञान होता है। मृत्यु के समय जीव की जो लेश्या होती है, उसकी अगली गति उसी के अनुसार होती है। मृत्यु के उपरान्त जब जीव परलोक में गमन करता है तो किसी न किसी लेश्या से युक्त होकर ही गमन करता है। यह आवश्यक नहीं कि जीवन काल में जीव की एक ही लेश्या रहे। आत्मा के भावों के साथ जीव की लेश्या बदलती रहती है। जिस प्रकार के विचार प्रायः जीवन पर्यन्त रहते हैं, स्वाभाविक तौर पर अंत समय में वैसे ही विचार बन जाते हैं। अतः हमें सदैव शुभ भावों में ही रहने का प्रयास करना चाहिए।

आत्मानंद जैन सभा चातुर्मास समिति के  सुरेन्द्र बद्धानी ने बताया की पाली से पाश्र्वनाथ जैन महिला मण्डल ने भी प्रवचन में भागीदारी निभाई तथा जैन धर्म के भजनों का लयबद्ध गायन किया।  पाली के महिला मण्डल द्वारा बीकानेर के जैन मंदिरों के भी दर्शन किये। महिला मण्डल की धार्मिक यात्रा का श्रीसकल संघ द्वारा अनुमोदना की गई तथा बीकानेर महिला मण्डल ने अतिथि श्राविकाओं का सम्मान कीया।  

समिति के शांतिलाल हनुजी कोचर ने बताया कि 27 सितम्बर को वल्लभ गुरु की पुण्यतिथि से पूर्व आयम्बिल होगा तथा दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम आयोजित होगें।  आज की संघ पूजा तथा प्रभावना पाश्र्वनाथ जैन महिला मण्डल, पाली तथा ओसवाल ग्रुप परिवार,जयपुर की ओर से की गई तथा दोहपर तीन बजे विमलनाथ भगवान का भक्ति जाप का आयोजन किया गया।  समिति के शांति लाल सेठिया, शांतिलाल कोचर हनुजी, सुरेंद्र बधानी, शांति लाल भंसाली, विनोद देवी कोचर, अजय बैद ने प्रबंकीय व्यवस्था संभाल रहे है।

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