सिंधु दर्शन यात्रा: आस्था, संस्कृति और राष्ट्रप्रेम की संगम यात्रा संपन्न
बीकानेर, 17 जून। कारगिल की ऊँचाइयों से लेकर सिंधु तट के पवित्र जल तक, भारतीय सिंधु सभा द्वारा आयोजित "सिंधु दर्शन यात्रा 2025" एक बार फिर श्रद्धा, साहस और सनातन चेतना का अद्वितीय संगम बनकर पूरी हुई। देशभर से आए लगभग 270 श्रद्धालुओं ने सिंधु जल में पवित्र स्नान कर अपनी जीवन यात्रा को धन्य किया। यह यात्रा केवल एक धार्मिक प्रवास नहीं, बल्कि सिंधु संस्कृति के गौरव, एकता और आत्मबोध का महापर्व थी, जिसमें 'जय सिंधु मैया', 'वंदे मातरम्', 'भारत माता की जय' और 'जय हिंद' जैसे उद्घोष वातावरण को देशभक्ति की ऊर्जा से गूंजाते रहे।
यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को मात्र 12 दिनों में चारों ऋतुओं का सजीव अनुभव हुआ — बर्फबारी से लेकर रोमांचक ऊँचे दर्रों की यात्रा तक। लेह-लद्दाख की पर्वतीय शृंखलाओं में जब सिंधुपुत्रों ने सिंधु माता के दर्शन किए, तो हर चेहरा भक्ति से आह्लादित हो उठा। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका और विचारधारा पर भी विस्तार से चर्चा की गई, जहाँ वक्ताओं ने बताया कि यह संगठन राष्ट्र को समर्पित, अनुशासित और सनातन संस्कृति को जीवंत रखने वाला है। "मेरी जिंदगी मेरी अपनी नहीं, बल्कि मेरे अपनों के लिए है" — इस विचारधारा ने उपस्थित जनों को गहराई से प्रभावित किया।
मुख्य अतिथि चंद्रकांत जी ने उद्घाटन सत्र में बताया कि यह महायात्रा पिछले 29 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रही है और अब यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और पर्यटन का एक सशक्त मंच बन चुकी है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सिंधियत को बचाए रखने के लिए अपने बच्चों को सिंधी भाषा सिखाना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि सिंधु जल के पान के साथ हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम केवल अपने लिए नहीं, अपितु राष्ट्र के लिए भी जिएँगे।
कार्यक्रम के अंत में कर्मठ सेवादारों को विशेष रूप से सम्मानित किया गया, जिनमें बीकानेर से गए वरिष्ठ पत्रकार और सेवाभावी प्रतिनिधि के कुमार आहूजा को दुपट्टा व मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। विदाई के समय जब सभी श्रद्धालु जयघोष करते हुए लौटे, तो उनके चेहरों पर यात्रा की पूर्णता का संतोष और भविष्य की नई ऊर्जा झलक रही थी।
यह यात्रा यह संदेश दे गई कि सिंधु केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना की वाहिका है। ऐसे आयोजनों से जुड़ना केवल एक यात्रा करना नहीं, अपितु अपने अस्तित्व से जुड़ना है। जय सिंधु, जय भारत!
Sindhu Darshan Yatra: Confluence of faith, culture and patriotism concluded