दिखावे की गौभक्ति किस काम की

बीकानेर, देश में गौहत्या पर रोक को लेकर बहस छिड़ी हुई है ! कुछ लोग चाहते हैं कि इस पूर्ण पाबंदी लगे तो कुछ की राय है कि इस मामले में सरकार अनावश्यक दखल न दे| भारतीय संस्कृति गाय के बगैर अधूरी है| जीवन के केंन्द्र में किसी न किसी रूप में अवश्य रही है लोक से लेकर शास्त्र तक में गाय की महिमा का वर्ण है|
लेकिन  जब बहुत से लोग अपने बूढे मां- बाप को ही बोझ समझने लगे हैं तो बूढी गाय, बैल, भैंस को बोझ समझने लगना कौन सी आश्यचर्य की बात है ?
गाय ने ज्यों ही दूध देना बंद किया, उसकी विदाई की तैयारियां होने लगती है| बीकानेर शहर में बहुत से लोग गौ- सेवक बन गए हैं| इन गौ-  सेवकों का  बस एक ही काम है| सुबह गाय का दूध निकालो और उसे सड़क पर छोड़ दो| फिर वे दिन भर प्लास्टिक की पन्नियां खाती घूमती हैं या क्या करती है, कोई देखने वाला नही |
  बीकानेर शहर में कुछ धार्मिक संस्थाओं ने असहाय पड़ी गायो को ले जाकर इलाज कराया तो इनके पेट से कई - कई किलो तक प्लास्टिक की पन्नियां निकलीं|
क्या यह गौ हत्या नही है ?
देश के कई जगह बूचड़खानों में तो गाय एक झटके में मार दी जाती है , लेकिन गाय का दूध निकाल कर  उन्हें आवरा छोड़ देने वाले क्या उन्हें तिल-तिल कर नही मार  रहें ? --- अख्तर भाई की कलम से


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