स्वार्थ से किया हुआ दान निदान है

श्री मद् भागवत् कथा ज्ञान यज्ञ द्वितीय दिवस

आज कोलकाता के बड़ाबाजार क्षेत्र में स्थित श्री मैढ़ क्षत्रिय सभा में पुरुषोत्तम मास के उपलक्ष्य पर श्री मद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिवस पर, प्रवक्ता भाई श्री अशोक व्यास ने आज भागवत् माहात्म्य का वर्णन करते हुए मनुष्य जीवन में कलियुग के संताप को हरने के लिए गुरु कृपा का बखान करते हुए भाई श्री ने शुकदेव माहात्म्य बताया ।
माहात्म्य में श्री व्यास जी ने गौकर्ण- धुंधुकारी के चरित्र का वर्णन में कहा की तुंगभद्रा नदी मनुष्य देह है आत्मदेव नामक पुरुष ही शरीर में स्थित आत्मा है एवं धुंधली बुद्धि है जिसका विवाह आत्मा से होता है व् धुंधुकारी (खोटे कर्म) ही इनका पुत्र है, जो की पांच वेश्या से लिप्त रहकर अपने प्राणों का त्याग कर देता है । मनुष्य भी धुंधुकारी के समान बनकर शब्द, स्पर्स, रस, रूप और गंध जैसी पांच वेश्याओं में अपनी इन्द्रियों को लिप्त कर स्वयं को नरकगामी बना लेता है, पापरूपी कलियुग गाय के रूप में धरती और एक पांव लिए हुए धर्म रूपी बैल का शोषण करता है, श्री व्यास ने कहा धर्म के चार ही पांव है- सत्य, तप, दया और दान किन्तु कलियुग के आते आते तीन पांव टूट गए केवल दान रूपी एक ही पांव बचा है । आज मनुष्य जीवन से सत्यता, तपस्या, और पर जीवों पर दया का भाव समाप्त हो गया केवल दान ही बचा है किन्तु स्वार्थ से किया हुआ निदान है निस्वार्थ से किया हुआ ही दान धर्म है ।   
    निराकार ब्रह्म ने स्वयं को विराट पुरुष नारायण के रूप अवतरित कर सृष्टि बनाने के ब्रह्मा को उत्पन्न किया, ब्रह्मा ने स्वयंभू मनु को बनाया । मनु की संतान ही मनुष्य कहलायी । विषय वासनाओं के रस (रसातल) में डूबी धरती को निकालने के लिए वाराह अवतार में ब्रह्म आये और अहंकार रूपी हिरण्याक्ष  नामक असुर का संहार कर उपदेश दिया की मनुष्य की इन्द्रियां जब विषयों के रस में डूब जाती है तब भीतर अहंकार रूपी राक्षस जन्म लेता है जिसे केवल ज्ञानस्वरूप वाराह ही मार सकता है ।

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