ठाकुर प्रसाद आर्य वेदज्ञ थे, वैदिक साहित्य के अनोखा संग्रह के साथ साथ विविध भाषाओं की 50हजार से अधिक पुस्तकों में 500 से अधिक विभिन्न भाषाओं के शब्द कोष थे, यह उन्होंने अपनी निजी कमाई व व्यक्तिगत प्रयासों किया उनका यह पुस्तक प्रेम का वन्दनीय है। "" ये अपने सम्बोधन में शिव बाडी शिवजी मन्दिर के अधिष्ठाता संवित सोमगिरी जी महाराज ने स्वर्णकार पंचायत भवन आर्य की शोकसभा में। आर्य का निधन दिनांक 8/9/17 को निनायनवें वर्ष की उम्र में दिल्ली में होगया था।
शेाक सभा की शुरुआत उनके पुत्र द्विजेन्द्र जी शास्त्री के यज्ञमानत्व व दिल्ली से पधारे आचार्य उषेबुद्ध के ब्रहमत्व में हुआ। आचार्य जी ने मोक्ष की विस्तृत व्याख्या की। मंचस्थ महेश आर्य प्रघान नगर आर्य समाज ने उनके जीवन के अनेक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वे वैदिक संस्कारों के ज्ञाता थे जीवन के आखरी पडाव तक सैकड़ों अन्येष्ठियां उन्होंने करवाई।
गौरीशंकर मधुकर ने कविता के माध्यम से श्रद्धांजली दी, अखिल भारतीय स्वर्णकार महासभा की अध्यक्ष श्रीमती मनीषा आर्य सोनी ने आर्य के पुस्तक प्रेम को अद्भुत बताते हुए इसे अनुकरणीय बताया।
बूंदी से पधारे एडवोकेट अभयदेव ने कहा कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे, साथ ही उनके द्वारा स्थापित वैदिक पुस्तकालय का विस्तार करते हुए जनोपयोगी बनाकर ही सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
इस अवसर डा, आर के कुलश्रेष्ठ, डूंगरकालेज की संस्कृत विभागाध्यक्ष डा नन्दिता सिंघवी सहित बीकानेर संभाग की आर्यसमाजो के सदस्य गण, कोटा, बूंदी, जोधपुर, जयपुर आदि से तथा बीकानेर की विभिन संस्थाओं के पदाधिकारियों सहित भारी संख्या में जनसमुदाय उपस्थित था।
उनके पुत्र द्विजेन्द्र शास्त्री ने शोक सभा में पधारे सभी व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया पिताका अनुसरण कर उनके कार्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प किया।
कार्यक्रम का संचालन केआर सोनी ने किया।